Kairana Lok Sabha Seat: यहां के वोटरों ने हरपाल को छोड़ कभी किसी को दोबारा सांसद नहीं चुना

लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। कभी बीजेपी के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय हुकुम सिंह की कर्मभूमि और पलायन के मुद्दे से देशभर में चर्चाओं में आई कैराना लोकसभा सीट पर इस बार भी सबकी नजर हुई है। कैराना लोकसभा सीट का महाभारत काल से पौराणिक जुड़ाव भी है. यहां के लोग मानते आ रहे हैं कि महाभारत काल में अंगराज कर्ण ने इसे कर्णनगरी के रूप में बसाया था। आजादी की लड़ाई में कैराना देशभक्तों की शरणस्थली रहा था। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले मराठों को छुपने के लिए कैराना ने जगह दी थी। कैराना वह इलाका है जहां उस्ताद अब्दुल करीम खां के जरिए संगीत के किराना घराने की शुरुआत हुई थी। वह घराना जिसने देश में खयाल गायकी को एक नया रंग दिया था। भीमसेन जोशी इसी घराने के शार्गिद थे, जिन्होंने 'मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा' को आवाज दी थी। 2019 के आम चुनाव में यहां से बीजेपी जीती थी। इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा हैं। हसन परिवार की बेटी इकरा हसन के सामने इस बार जहां विरासत को बचाना चुनौतीपूर्ण है। वहीं सांसद प्रदीप चौधरी को जनता दल के लगातार दो बार सांसद रहे हरपाल सिंह के रिकॉर्ड की बराबरी कर भाजपा को जीत दिलाना आसान नहीं होगा। वहीं पहली बार चुनाव लड़ रहे बसपा के प्रत्याशी श्रीपाल राणा के सामने साख बचाना चुनौती रहेगी।बीते चुनावों पर नजर डालें तो वर्ष 1967 के लोकसभा चुनाव में गयूर अली खान और 1971 में कांग्रेस के टिकट पर शफाकत अली चुनाव जीते थे। 1980 के चुनाव में चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी जनता पार्टी (एस) के टिकट पर सांसद चुनी गईं। 1984 में कांग्रेस के चौधरी अख्तर हसन जीते। वर्ष 1989 के बाद कांग्रेस हाशिए पर पहुंचती गई। नब्बे के दशक में उठी राम लहर ने भाजपा को संजीवनी दी। 1991 और 1996 में भाजपा प्रत्याशी उदयवीर सिंह दूसरे नंबर पर थे, लेकिन 1998 में पार्टी के वीरेंद्र वर्मा ने सीट जीत ली। 1996 के लोकसभा चुनाव में सपा को अख्तर हसन के बेटे मुनव्वर हसन ने पहली जीत दिलाई। 98 में भाजपा को जीत मिली लेकिन अगले दो चुनाव रालोद के खाते में गए। राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और भाजपा ने तीन-तीन बार कैराना पर जीत दर्ज की है। सपा और बसपा सिर्फ एक बार जीते हैं। 2009 में कैराना जीतने का बसपा सुप्रीमो मायावती का अधूरा सपना पूर्व सांसद मुनव्वर हसन की पत्नी तवम्सुम हसन ने पूरा किया। वर्ष 1984 में कैराना लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव में उतरने वाली मायावती को कांग्रेस की लहर में तीसरे पायदान पर ही संतोष करना पड़ा था।इसे भी पढ़ें: Muzaffarnagar Lok Sabha Seat: क्या संजीव बलियान लगाएंगे हैट्रिक? 2024 में दमदार मुकाबले की उम्मीदराजनीतिक रूप से कैराना हसन परिवार और बाबू हुकुम सिंह के परिवार का गढ़ रहा है। कैराना के राजनीतिक माहौल को वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे में बदल दिया। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की लहर चली और 2014 में भाजपा के हुकुम सिंह 2.36 लाख वोटों से चुनाव जीते, जो अब तक का यहां का सबसे बड़ा अंतर है। वर्ष 2015 में कैरना के तत्कालीन सांसद बाबू हुकुम सिंह ने अपराधीकरण की वजह से शामली से व्यवसायियों के पलायन का मुझ उठाया था, जिस पर सियासत खूब गरमाई थी।कैराना लोकसभा सीट की बात की जाए तो यहां पर चुनावी तस्वीर साफ हो गई है। आगामी 19 अप्रैल को इस सीट पर मतदान होगा। जिसकी तैयारी में सभी दलों के पदाधिकारी भी लगे हुए हैं। 2024 का रण अनौपचारिक तौर पर सज चुका है। एक तरफ सपा-कांग्रेस का गठबंधन है तो दूसरी तरफ भाजपा-रालोद एक साथ हैं। पिछला चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ने वाली बसपा अबकी बार एकला चलो की राह पर है। सपा ने तबस्सुम हसन की बेटी इकरा हसन को उम्मीदवार बनाया है। उनके भाई नाहिद हसन सपा के टिकट पर कैराना से विधायक हैं। लोकसभा क्षेत्र की बाकी चार विधानसभा सीटों में 2 भाजपा और 2 रालोद के पास है।भाजपा ने इस सीट पर दोबारा से सांसद प्रदीप चौधरी को जहां चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन से हसन परिवार की बेटी इकरा हसन चुनाव मैदान में ताल ठोक रही है। इसी तरह बसपा ने सहारनपुर के जिले के भावसी निवासी रिटायर्ड बीएसएफ के जवान श्रीपाल राणा को प्रत्याशी बनाया है। प्रदीप चौधरी के सामने दोबारा से इस बार भी सीट पर कमल खिलाने की चुनौती है। क्योंकि सीट पर दो बार सिर्फ जनता दल के प्रत्याशी हरपाल पंवार वर्ष 1989 और 1991 में सांसद रहे थे। इसके बाद कोई भी प्रत्याशी इस सीट पर दो बार लगातार जीत दर्ज नहीं कर सका। प्रदीप चौधरी यदि इस बार चुनाव जीतते हैं तो जनता दल के लगातार दो बार सांसद बनने के रिकार्ड की बराबरी कर लेंगे। प्रदीप चौधरी के पिता मास्टर कंवरपाल सिंह भी तीन बार नकुड़ विधानसभा से विधायक रह चुके हैं। प्रदीप चौधरी खुद तीन बार विधायक रह चुके हैं। पिछले चुनाव में प्रदीप चौधरी ने सपा की तबस्सुम बेगम को हराया था। प्रदीप चौधरी को 566961 वोट मिले थे जबकि तबस्सुम को 474801 वोट मिले थे। जबकि तीसरे नंबर पर कांग्रेस के हरेंद्र मलिक रहे थे, जिन्होंने 69355 मत हासिल किए थे। हसन परिवार की बेटी इकरा हसन के सामने विरासत बचाने की चुनौती रहेगी। भाजपा के सांसद हुकुम सिंह की मौत के बाद वर्ष 2018 में उपचुनाव हुआ, जिसमें हसन परिवार की इकरा की मां तबस्सुम हसन ने रालोद से चुनाव लड़ते हुए 4,81,182 प्राप्त कर विजय हासिल की थी। इससे पूर्व 2009 में भी तबस्सुम हसन ने बसपा से चुनाव लड़ा था और 2832590 मत हासिल कर जीत दर्ज की थी। 1996 में सपा से तबस्सुम हसन के पति मुनव्वर हसन ने चुनाव लड़ा था, उन्होंने 184636 मत प्राप्त कर जीत दर्ज की थी। इससे पूर्व वर्ष 1984 में मुनव्वर हसन के पिता चौधरी अख्तर हसन ने कांग्रेस से चुनाव लड़ते हुए जीत दर्ज की थी। इकरा के भाई नाहिद हसन वर्तमान में कैराना से विधायक हैं।  उधर, बसपा ने लोकसभा सीट पर सहारनपुर जिले के भावसी निवासी रिटायर्ड बीएसएफ के जवान श्रीपाल राणा को प्रत्याशी बनाया है। श्रीपाल राणा ने छह माह पूर्व ही बसपा ज्वाइन की थी। श्रीपाल राणा के सामने बस

Apr 4, 2024 - 20:33
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Kairana Lok Sabha Seat: यहां के वोटरों ने हरपाल को छोड़ कभी किसी को दोबारा सांसद नहीं चुना
लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है। कभी बीजेपी के दिग्गज नेता रहे स्वर्गीय हुकुम सिंह की कर्मभूमि और पलायन के मुद्दे से देशभर में चर्चाओं में आई कैराना लोकसभा सीट पर इस बार भी सबकी नजर हुई है। कैराना लोकसभा सीट का महाभारत काल से पौराणिक जुड़ाव भी है. यहां के लोग मानते आ रहे हैं कि महाभारत काल में अंगराज कर्ण ने इसे कर्णनगरी के रूप में बसाया था। आजादी की लड़ाई में कैराना देशभक्तों की शरणस्थली रहा था। अंग्रेजों के खिलाफ लड़ने वाले मराठों को छुपने के लिए कैराना ने जगह दी थी। कैराना वह इलाका है जहां उस्ताद अब्दुल करीम खां के जरिए संगीत के किराना घराने की शुरुआत हुई थी। वह घराना जिसने देश में खयाल गायकी को एक नया रंग दिया था। भीमसेन जोशी इसी घराने के शार्गिद थे, जिन्होंने 'मिले सुर मेरा तुम्हारा तो सुर बने हमारा' को आवाज दी थी। 2019 के आम चुनाव में यहां से बीजेपी जीती थी। इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला नजर आ रहा हैं। हसन परिवार की बेटी इकरा हसन के सामने इस बार जहां विरासत को बचाना चुनौतीपूर्ण है। वहीं सांसद प्रदीप चौधरी को जनता दल के लगातार दो बार सांसद रहे हरपाल सिंह के रिकॉर्ड की बराबरी कर भाजपा को जीत दिलाना आसान नहीं होगा। वहीं पहली बार चुनाव लड़ रहे बसपा के प्रत्याशी श्रीपाल राणा के सामने साख बचाना चुनौती रहेगी।

बीते चुनावों पर नजर डालें तो वर्ष 1967 के लोकसभा चुनाव में गयूर अली खान और 1971 में कांग्रेस के टिकट पर शफाकत अली चुनाव जीते थे। 1980 के चुनाव में चौधरी चरण सिंह की पत्नी गायत्री देवी जनता पार्टी (एस) के टिकट पर सांसद चुनी गईं। 1984 में कांग्रेस के चौधरी अख्तर हसन जीते। वर्ष 1989 के बाद कांग्रेस हाशिए पर पहुंचती गई। नब्बे के दशक में उठी राम लहर ने भाजपा को संजीवनी दी। 1991 और 1996 में भाजपा प्रत्याशी उदयवीर सिंह दूसरे नंबर पर थे, लेकिन 1998 में पार्टी के वीरेंद्र वर्मा ने सीट जीत ली। 1996 के लोकसभा चुनाव में सपा को अख्तर हसन के बेटे मुनव्वर हसन ने पहली जीत दिलाई। 98 में भाजपा को जीत मिली लेकिन अगले दो चुनाव रालोद के खाते में गए। राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और भाजपा ने तीन-तीन बार कैराना पर जीत दर्ज की है। सपा और बसपा सिर्फ एक बार जीते हैं। 2009 में कैराना जीतने का बसपा सुप्रीमो मायावती का अधूरा सपना पूर्व सांसद मुनव्वर हसन की पत्नी तवम्सुम हसन ने पूरा किया। वर्ष 1984 में कैराना लोकसभा सीट से पहली बार चुनाव में उतरने वाली मायावती को कांग्रेस की लहर में तीसरे पायदान पर ही संतोष करना पड़ा था।

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राजनीतिक रूप से कैराना हसन परिवार और बाबू हुकुम सिंह के परिवार का गढ़ रहा है। कैराना के राजनीतिक माहौल को वर्ष 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे में बदल दिया। सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की लहर चली और 2014 में भाजपा के हुकुम सिंह 2.36 लाख वोटों से चुनाव जीते, जो अब तक का यहां का सबसे बड़ा अंतर है। वर्ष 2015 में कैरना के तत्कालीन सांसद बाबू हुकुम सिंह ने अपराधीकरण की वजह से शामली से व्यवसायियों के पलायन का मुझ उठाया था, जिस पर सियासत खूब गरमाई थी।

कैराना लोकसभा सीट की बात की जाए तो यहां पर चुनावी तस्वीर साफ हो गई है। आगामी 19 अप्रैल को इस सीट पर मतदान होगा। जिसकी तैयारी में सभी दलों के पदाधिकारी भी लगे हुए हैं। 2024 का रण अनौपचारिक तौर पर सज चुका है। एक तरफ सपा-कांग्रेस का गठबंधन है तो दूसरी तरफ भाजपा-रालोद एक साथ हैं। पिछला चुनाव सपा के साथ मिलकर लड़ने वाली बसपा अबकी बार एकला चलो की राह पर है। सपा ने तबस्सुम हसन की बेटी इकरा हसन को उम्मीदवार बनाया है। उनके भाई नाहिद हसन सपा के टिकट पर कैराना से विधायक हैं। लोकसभा क्षेत्र की बाकी चार विधानसभा सीटों में 2 भाजपा और 2 रालोद के पास है।

भाजपा ने इस सीट पर दोबारा से सांसद प्रदीप चौधरी को जहां चुनाव मैदान में उतारा है। वहीं सपा-कांग्रेस गठबंधन से हसन परिवार की बेटी इकरा हसन चुनाव मैदान में ताल ठोक रही है। इसी तरह बसपा ने सहारनपुर के जिले के भावसी निवासी रिटायर्ड बीएसएफ के जवान श्रीपाल राणा को प्रत्याशी बनाया है। प्रदीप चौधरी के सामने दोबारा से इस बार भी सीट पर कमल खिलाने की चुनौती है। क्योंकि सीट पर दो बार सिर्फ जनता दल के प्रत्याशी हरपाल पंवार वर्ष 1989 और 1991 में सांसद रहे थे। इसके बाद कोई भी प्रत्याशी इस सीट पर दो बार लगातार जीत दर्ज नहीं कर सका। 

प्रदीप चौधरी यदि इस बार चुनाव जीतते हैं तो जनता दल के लगातार दो बार सांसद बनने के रिकार्ड की बराबरी कर लेंगे। प्रदीप चौधरी के पिता मास्टर कंवरपाल सिंह भी तीन बार नकुड़ विधानसभा से विधायक रह चुके हैं। प्रदीप चौधरी खुद तीन बार विधायक रह चुके हैं। पिछले चुनाव में प्रदीप चौधरी ने सपा की तबस्सुम बेगम को हराया था। प्रदीप चौधरी को 566961 वोट मिले थे जबकि तबस्सुम को 474801 वोट मिले थे। जबकि तीसरे नंबर पर कांग्रेस के हरेंद्र मलिक रहे थे, जिन्होंने 69355 मत हासिल किए थे। हसन परिवार की बेटी इकरा हसन के सामने विरासत बचाने की चुनौती रहेगी। भाजपा के सांसद हुकुम सिंह की मौत के बाद वर्ष 2018 में उपचुनाव हुआ, जिसमें हसन परिवार की इकरा की मां तबस्सुम हसन ने रालोद से चुनाव लड़ते हुए 4,81,182 प्राप्त कर विजय हासिल की थी।
 
इससे पूर्व 2009 में भी तबस्सुम हसन ने बसपा से चुनाव लड़ा था और 2832590 मत हासिल कर जीत दर्ज की थी। 1996 में सपा से तबस्सुम हसन के पति मुनव्वर हसन ने चुनाव लड़ा था, उन्होंने 184636 मत प्राप्त कर जीत दर्ज की थी। इससे पूर्व वर्ष 1984 में मुनव्वर हसन के पिता चौधरी अख्तर हसन ने कांग्रेस से चुनाव लड़ते हुए जीत दर्ज की थी। इकरा के भाई नाहिद हसन वर्तमान में कैराना से विधायक हैं।  उधर, बसपा ने लोकसभा सीट पर सहारनपुर जिले के भावसी निवासी रिटायर्ड बीएसएफ के जवान श्रीपाल राणा को प्रत्याशी बनाया है। श्रीपाल राणा ने छह माह पूर्व ही बसपा ज्वाइन की थी। श्रीपाल राणा के सामने बसपा की साख बचाना चुनौती रहेगा। अब देखना यह है कि प्रदीप चौधरी इस सीट पर फिर से कमल खिलाने में कामयाब होते हैं या फिर बसपा या सपा चुनाव परिणाम को पलटती है। मतगणना के बाद ही यह स्पष्ट हो सकेगा।

बसपा ने इस बार कैराना लोकसभा सीट पर श्रीपाल राणा को उतारकर ठाकुर-दलित कार्ड खेला है। इस स्थिति में बसपा को ठाकुर के साथ दलित, मुस्लिम और अन्य वर्गों का वोट मिलता है तो भाजपा और सपा का खेल भी बिगड़ सकता है। अन्य निर्दलीय और पार्टियों के प्रत्याशी भी भाजपा, सपा का खेल बिगाड़ सकते हैं। कैराना लोकसभा सीट में पांच विधानसभ शामली, कैराना, थानाभवन, नकुड़ और गंगोह शामिल हैं। इस सीट पर मतदाताओं की संख्या-17 लाख 19 हजार 11 वोट है। कैराना लोकसभा सीट मुस्लिम वोटों का बड़ा गढ़ है. यहां पर करीब 17 लाख मतदाताओं में सर्वाधिक छह लाख मुस्लिम है। एक अनुमान के मुताबिक, 1.50 लाख जाट, 2.50 लाख दलित, 1.30 लाख गुर्जर, 1.35 लाख सैनी, 1.25 लाख कश्यप, 50 हजार ठाकुर व 60 हजार से ज्यादा वैश्य वोट है।